Friday, May 16, 2008
नीड़ का निर्माण
बहुत चाह थी कि एक आशियाना हो मेरा जहाँ मैं कुछ भी बोल सकूं, कुछ भी कह सकूं। अंग्रेज़ी की जरूरत, या कहें मजबूरी, कहीं न कहीं रोक लेती थी मेरी अभिव्यक्तियाँ। नही कह पता था मैं अपने मन की, सबसे, सब कुछ। आज अपना नीड़ बना लिया है गूगल के घर। अब उड़ सकता हूँ मैं पाखी बन कर। निकल सकता हूँ मैं दूर गगन में, देख सकता हूँ मैं दुनिया को एक नयी नज़र से। धन्यवाद गूगल!
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