Tuesday, December 20, 2011

मैं ...

हाँ मैं जानता हूँ उसे,
और इधर कुछ दिनों से खोज भी रहा हूँ.
पर वो मिल नहीं रहा,
जाने कहाँ खो गया है.
सोचता हूँ तो याद आता है,
अभी हाल में ही तो दिखा था,
वो फिर नज़र क्यों नहीं आता!
शायद मुझसे ही आँख मिचौली खेल रहा है,
सोचता होगा कि मुझे उलझा लेगा,
हरा देगा,
और हाँ, मैं उससे हारना भी चाहता हूँ,
देखना चाहता हूँ उसके चेहरे पर जीत कि चमक,
पर अभी मिल नहीं रहा,
यकीन है कि मिल ही जायेगा मुझको,
आज नहीं तो कल,
यहीं कहीं, आस पास.

Sunday, December 11, 2011

अन्ना मैं हूँ!

दिखला दो इस सत्ता को, हम खास नहीं हैं आम सही,
पर वक़्त उसी का होता है, जो बिकता है सरे-शाम नहीं,
इन बिकने वाले लोगों से, क्या उम्मीद लगाये बैठे हो,
सिखला दो इन गद्दारों को, जीने का अंदाज़ सही.

राख बन कर हम बैठे हैं, यह भस्म हमे नहीं चाहिए,
अन्ना तो अब निकल पड़ा, कुछ बात बदलनी चाहिए,
कब तक घरों में बैठोगे, और सोचोगे कुछ हुआ नहीं,
इन सुलगते शोलों से बस आग निकलनी चाहिए.

सच है अन्ना, कोई राज़ नहीं,
यह सरकार तुम्हारी घात में है,
अन्ना मैं हूँ, अन्ना तुम हो,
अन्ना हम सब साथ में है.
वो एक अन्ना को छेड़ेंगे तो बात बिगड़ ही जाएगी,
हम संग खड़े जो मिल करके सरकार पिघल ही जाएगी.

Saturday, December 3, 2011

यहीं कहीं तो थी

कहीं खो गयी है, यहीं कहीं तो थी,
सुबह से ढूंढ रहा हूँ पर मिल नहीं रही,
शायद घर के किसी कोने में हो,
या काम के सिलसिले में कहीं छूट तो नहीं गयी,
कब से ढूंढ रहा हूँ पर मिल नहीं रही.

याद पड़ता है, अभी कल ही तो आयी थी,
जब बच्चों के साथ खेल रहा था,
और हाँ, जब पत्नी से अठखेलियाँ कर रहा था,
वहीँ पर तो थी,
फिर कहाँ गुम हो गयी,
सुबह से ढूँढ रहा हूँ, जाने कहाँ खो गयी.

उदासियों के बादल गहरे होते जाते हैं,
जाने क्यों लगने लगा है कि,
शायद अब न मिल पायेगी,
फिर भी एक कोशिश और करता हूँ,
उम्मीदों का साथ न छोड़ता हूँ,
कहीं तो होगी, अभी यहीं कहीं तो थी.

सुबह से शाम होने को आयी,
वो न मिली,
काम के बीच भी उसे ढूँढता रहा,
वो न मिली जिसे न मिलना था,
बुझे मन से घर आता हूँ,
मेरी दोनों बच्चियां दौड़ कर लिपट जाती है,
दिखाती हैं एक कागज़ का पन्ना,
पापा, हमने आपके लिए कार्ड बनाया है,
Welcome Home लिखा है कार्ड पर,
मेरी आँखें नम हो जाती है,
हम तीनों के चेहरे पर आ जाती है हंसी,
यही तो है जिसे कब से खोज रहा था,
मुझे मिल ही गई, वो हंसी.