Wednesday, June 29, 2011

चन्द्र ग्रहण - एक लघुकथा

बचपन में जब माँ गर्मियों कि छुट्टियों में छत में साथ में लेट कर जब तारों कि कहानिया सुनाती तो मैं उनमे कहीं खो जाता. में भी कहानी का हिस्सा बन जाता. इन्ही कहानियों के द्वारा माँ ने मुझे कुछ तारों को पहचानना सिखाया. शायद तभी किसी समय खगोलीय घटनाओं से मेरा लगाव बढ़ता गया. कभी समाचार पत्र में पढता कि २०० साल बाद आज तीन ग्रह एक
सीध में आयेंगे, तो मन मचल जाता इस घटना को देखने के लिए. बार बार कोसता कि मेरे पास दूरबीन क्यों नहीं है.

आज मैं बहुत खुश था. सुबह सुबह समाचार पत्र में पढ़ा कि इस सदी का सबसे लम्बा पूर्ण चंद्रग्रहण आज रात दिखेगा. और सबसे बड़ी बात कि भारत भी उन चद देशों में है जहाँ यह दिखाई देगा. में बहुत प्रफुल्लित था कि एक और विलक्षण दृश्य को में अपनी आँखों से देखूंगा.

शाम को TV में विभिन्न चैनलों को देख रहा था, मकसद यही था कि इस घटना कि विस्त्रित जानकारी मिल जाये. कोई कहता कि शायद बादल लगे हों तो दिल बैठ सा जाता था. कहीं किसी चैनल पे वार्ता चल रही थी कि किस राशि पे क्या असर होगा इस ग्रहण का.

मैं बाहर कई बार देख कर आया कि बादल तो नहीं लगे हैं; और देख के तसल्ली होती कि अभी तो आसमान साफ है. मेरी हालत उस बच्चे कि तरह थी जिसके स्कूल जाने के समय बारिश हो जाये और "रेनी डे" होने कि पूर्ण संभावना हो. खैर...

TV देखते हुए इस ग्रहण कि जानकारी मैंने पूरे परिवार को दी. तभी किसी दैवज्ञ ने बताना शुरू किया - "धनु राशि पर यह ग्रहण भारी है, धनु राशि वाले जातक ग्रहण को न देखें". मैं चैनल बदलना चाहता था पर माँ ने रोक दिया. दैवज्ञ का कथन जारी था - "धनु राशि के जातक, ग्रहण का समय इश्वर अराधना में बिताएं." बस इतना सुनना था कि माँ ने फरमान जारी कर दिया कि तुझे ग्रहण के समय बाहर निकलने कि जरूरत नहीं है.

"अरे माँ, ये सब बस खगोलीय घटनाएँ हैं और कुछ नहीं."

"मैं कुछ नहीं सुनना चाहती, धनु के लिए, ग्रहण ठीक नहीं हैं तो नहीं है."

"पर माँ, यह घटना फिर इस जीवनकाल में देखने को न मिलेगी." मैंने अधीर होते हुए कहा.

"बेटा जीवन रहा तो और बहुत से घटनाएँ देखने को मिलेंगी." माँ के स्वर में डर था.

"मैं आज सुबह से इस पल का इन्तजार कर रहा हूँ." मैंने तर्क देने का प्रयास किया.

"तुझे मेरी कसम अगर तुने आज चन्द्र ग्रहण देखा तो."

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