Sunday, December 11, 2011

अन्ना मैं हूँ!

दिखला दो इस सत्ता को, हम खास नहीं हैं आम सही,
पर वक़्त उसी का होता है, जो बिकता है सरे-शाम नहीं,
इन बिकने वाले लोगों से, क्या उम्मीद लगाये बैठे हो,
सिखला दो इन गद्दारों को, जीने का अंदाज़ सही.

राख बन कर हम बैठे हैं, यह भस्म हमे नहीं चाहिए,
अन्ना तो अब निकल पड़ा, कुछ बात बदलनी चाहिए,
कब तक घरों में बैठोगे, और सोचोगे कुछ हुआ नहीं,
इन सुलगते शोलों से बस आग निकलनी चाहिए.

सच है अन्ना, कोई राज़ नहीं,
यह सरकार तुम्हारी घात में है,
अन्ना मैं हूँ, अन्ना तुम हो,
अन्ना हम सब साथ में है.
वो एक अन्ना को छेड़ेंगे तो बात बिगड़ ही जाएगी,
हम संग खड़े जो मिल करके सरकार पिघल ही जाएगी.

1 comment:

Anonymous said...

I am Anna !!

Very well written Sir !!