सुबह कब हो गयी पता ही न चला। एक अलसाई सुबह कोहरे के आगोश में कड़ाके की ठंड के साथ इंतज़ार कर रही थी मेरा। रेनू उठ कर अपने कार्यों में व्यस्त हो चुकी थी, हमेशा की तरह। मैं यूं ही चल पड़ा ताल की ओर। बहुत छोटेपन से मुझे पानी के केनारे बेहद पसंद हैं। ताल के किनारे चहलकदमी करते हुए यूं ही दूर तक चला जाना अच्छा लग रहा था। सुबह की सर्द और नम हवाएँ अंतर्मन को भीगो रही थीं। चंद अनजाने चेहरे, मुझे पहचानने की कोशिश करते आते-जाते दिख जाते। ताल के चारों ओर घूम लेने के बाद मुझे एहसास हुआ कि घर पर सब इंतज़ार कर रहे होंगे। काफी समय बीत चुका था और सूरज भी उदय हो चुका था। वहीं रोड के किनारे कुछ दुकाने भी खुल गयी थीं.. कुछ बुजुर्ग एक मेज़ के किनारे बैठे थे। मैंने अभी उन्हें पार किया ही था के एक आवाज़ आयी "तुम्हारी चाल"... मुझे लगा शायद किसी ने मुझसे कुछ कहा. पीछे मुड़ के देखा तो वह शतरंज खेल रहे थे।
मेरे कदम ख़ुद बा ख़ुद उस और मुड़ गए जहाँ शतरंज की बिसात बिछी थी। कुछ बुजुर्ग चेहरे चारों ओर जमा थे. ....
10 comments:
हिंदी लिखाड़ियों की दुनिया में आपका स्वागत। खूब लिखे। बढ़िया लिखें ..हजारों शुभकामनांए
बहुत सुंदर...आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्लाग जगत में स्वागत है.....आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्त करेंगे .....हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
आपका स्वागत है आप इसी तरह अच्छा लिखते रहें ऐसी मेरी कामना है।
Prakriti ke kareeb jane ka ahsas alag hi hota hai.Swagat.
मन के भावों का अच्छा चित्रण किया है आपने
हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका हार्दिक स्वागत है.
खूब लिखें,अच्छा लिखें
सुखद होता है दैनिक चर्या से अलग कुछ करने का सुख। और इसमें अगर प्रकृति का साथ हो तो कहना ही क्या। कुछ ऐसे ही और पल आपको अंतर्मन को भिगो दें और इन एहसासों से आपके दिन तरोताजा हों... इन्हीं शुभकामनाओं के साथ।
Bahut achha laga padhe ke. uska ek karan yaha bhi hai ki mai NAINITAL ki rahne wali hu.
sundar likha hai....isi tarah likhte rahe..
Hame to pata sahi me nahi tha ,tum itana accha likhate ho.Lovely writing , seedhi saadhi bhasa phir bhi pretty. Love to read more!!
बहुत अच्छा है. पर और लिखिए. Keep it up. विविध विषयों पर लेखनी चलिए.
मोहम्मद सलीम
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